National Salt Satyagraha Memorial, Dandi, Gujarat, India
दांडी बीच (Dandi Beach) अरब सागर के तट पर नवसारी शहर के पास स्थित है।
तालुका के मुख्य शहर से 19 किमी दूर, यह गांव समुद्र तट पर स्थित है और महात्मा गांधीजी (Gandhiji) के ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह (National Salt Satyagraha Memorial) के लिए प्रसिद्ध है।
यह ऐतिहासिक स्मारक समुद्र के करीब है। इस स्मारक के सामने "महात्मा गांधीजी" की याद में एक "कीर्ति" स्तंभ बनाया गया है जहाँ एक "सुरक्षित विला" है जहाँ गांधीजी (Gandhiji) रात में रहते थे।
वर्तमान में इसमें गांधीजी (Gandhiji) संग्रहालय और पुस्तकालय है। गांधीजी संग्रहालय के पीछे दाउदी वोरा की प्रसिद्ध "दरगाह" (मकबरा) माई साहेबा मजार (हिजला युसूफी) है जहां सभी क्षेत्रों के लोग आस्था के लिए बाहर से आते हैं।
और आप Dandi में हुए Memorial के बारे में ज्यादा जानने के लिए उनकी वेबसाइट http://nssm.in/ पर से आप National Salt Satyagraha memorial के बारे में और टिकट के बारे में और गहराई से जान सकते है
History of National Salt Satyagraha
National Salt Satyagraha भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में दांडी का एक महान ऐतिहासिक महत्व है। दांडी यात्रा या नमक यात्राऔपनिवेशिक भारत में सविनय अवज्ञा का एक कार्य था और मोहनदास करमचंद गांधीजी(Gandhiji) द्वारा शुरू किया गया था।
ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा नमक कर की शुरूआत के बाद, सभी नमक उत्पादन गतिविधियों को स्थानीय लोगों द्वारा अवैध माना गया जो लोगों के अधिकारों का घोर उल्लंघन था।
जब महात्मा गांधीजी (Gandhiji) ने नमक कर के विरोध में दांडी को एक स्थान के रूप में चुना, तो गाँव को मानचित्र पर रखा गया और 1930 में ऐतिहासिक महत्व प्राप्त हुआ।
12 मार्च 1930 को अहमदाबाद के साबरमती में महात्मा गांधीजी (Gandhiji) और 78 लोगों के एक समूह के साथ शुरू हुआ। यह 6 अप्रैल 1930 तक 24 दिनों तक चला। जैसे-जैसे यात्राआगे बढ़ा, देश भर में विरोध की खबरें फैल गईं और भारत के विभिन्न हिस्सों से अनुयायी महात्मा गांधीजी के साथ शामिल हो गए।
जब तक वे दांडी पहुंचे, तब तक हजारों अनुयायी नमक पर कर लगाने का विरोध कर रहे थे। जब सत्याग्रही दांडी पहुंचे, तो महात्मा गांधीजी (Gandhiji) ने अरब सागर के पानी से नमक का उत्पादन किया और अनुयायियों को इस अधिनियम द्वारा पूर्ण स्वराज (पूर्ण संप्रभुता और स्वशासन) प्राप्त करने की घोषणा के साथ संबोधित किया।
यात्रा ने एक राष्ट्रव्यापी सविनय अवज्ञा आंदोलन को जन्म दिया और ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता का एक निर्माण खंड बन गया।
A legendary mural fixed in stone relief
कुल मिलाकर २४ कथा भित्ति चित्र हैं। भित्ति चित्रों के लिए प्रारंभिक अवधारणा आईआईटी बॉम्बे और केरल के उराकम में क्लेफिंगर्स पॉटरी में की गई थी। केरल के उराकम में आईआईटी बॉम्बे और क्लेफिंगर्स पॉटरी में अवधारणा के बाद, भित्ति चित्र जवाहरलाल नेहरू वास्तुकला और ललित कला विश्वविध्यालय द्रारा मिट्टी में डाले गए थे और बाद में उन्हें स्टूडियो सुकृति द्वारा कांस्य में डाला गया था। भित्ति चित्रों का विवरण नीचे दिया गया है:-
1. 2 मार्च 1930, गांधीजी ने वायसराय को पत्र लिखकर नमक का कानून को तोड़ने के लिए प्रस्ताव की जानकारी देते है। 7 मार्च 1930 को सरदार वल्लभभाई पटेल को यात्रा की तैयारी और प्रचार करते हुए रास गांव में गिरफ्तार कर लिया गया।
2. गुजरात विद्यापीठ के सोलह विद्यार्थीओ की अरुण टुकड़ी (अग्रिम दल ) दांडी पथ के हर गांव में साईकल से पहुँचकर यात्रा के बारे में जागृति पैदा करती है | गांव की जनगणना ( सर्वे द्वारा ) जानकारी इकट्ठी करती है और दिन और रात में यात्रीओ के ठहरने और सम्मलेन करने का इंतजाम करती है |
3. 12 मार्च 1930, सुबह की प्रार्थना के बाद, कस्तूरबा गांधीजी को तिलक लगाती हैं जो धर्मयात्रा के लिए निकल रहे हैं। - एक कठोर परंतु एक सादगी भरी सत्याग्रह की यात्रा
4. यात्रा से पहले एक शाम साबरमती नदी के तट पर गाँधीजी सार्वजनिक सभा को संबोधित करते है | सभा में २००० लोग उपस्थित थे |
5. नदी पार करती यात्रा। यात्रीओं को विदा करने कई लोग जुटे हैं। उस पार से कई लोग गांधीजी और यात्रीओं के स्वागत करने आगे आये हैं।
6. यात्रा की राह में गांधीजी एक गाँव में लोगों को संबोधित करते हुए। वे कई मुद्दों पर बात करते हैं। नमक पर के कर (टेक्स) से लेकर चरखा चलाने, खादी पहनने, शराब की दुकान पर पिकेटिंग करने और असपृश्यता के मुद्दे तक।
7. यात्रीओं का गाँव में संगीतमय स्वागत। गाँव के लोग गांधीजी को सुनते हुए। गाँववाले पैसे और एक बैलगाडी भेंट करते हुए।
8. यात्री आनंद शहर में एक स्कूल में पडाव डाले हुए। यह सोमवार का दिन है. आराम का दिन। गांधीजी इस दिन मौन पालते हैं। ज्यादातर यात्री अपने रोजमर्रा के कामों में लगे हैं। कुछ यात्री स्थानीय लोगों को अहिसात्मक संघर्ष का मर्म बता रहे हैं।
9. यात्रीओं में से एक पंडित खरे हैं जो रोज शाम की प्रार्थना करवाते हैं। एक १०५ साल की बुजुर्ग महिला गांधीजी को शीघ्र ही स्वराज लेकर विजयी वापसी के लिये आशीर्वाद देते हुए।
10. यात्री देर रात किश्तिओं द्वारा और दलदल में चलकर मही नदी पार कर कारेली गाँव पहुंचते हैं। पीछे से जवाहरलाल नेहरू भी पहुंचते हैं। वे और गांधीजी आने वाले समय में ऑल इन्डिया कोंग्रेस कमिटि द्वारा लिये जाने वाले कदमों की चर्चा करते हैं।
11. एक गाँव की सभा में गांधीजी अस्पृश्यों के बैठने के लिये अलग इंतजाम देख खूब दुखी होते हैं, उनके संकेत से यात्री उठ कर अस्पृश्यों के संग बैठते हैं।
12. जैसे जैसे यात्रा आगे बढ़ती है गांववासी गर्मजोशी से यात्रिओं का स्वागत करते है | कई यात्रा में शामिल हो जाते है | गांधीजी की एक झलक पाने को लोग उत्सुक है | कुछ तो पेड़ पर चढ़ जाते है |
13. जंबूसर में गांधीजी एक विशाल समूह को संबोधित करते हुए | इस सभा में मोतीलाल नेहरू और जवाहरलाल नेहरू भी बोले थे | लोग दान देते हुए आगे आते हुए , इनमे एक छोटी सी लड़की अपने हाथीदांत के कंगन का दान करते हुए |
14. एक, दिन के समय का पडाव। नाई गांधीजी की हजामत बनाता हुआ। मोची गांधीजी के चप्पल ठीक करता हुआ। मुसलमान बिरादरों की टोली गांधीजी से मिल कर इस लड़ाई में पूरे दिल से हिस्सेदार होने का दिलासा देती हुई।
15. यात्री नर्मदा नदी पार करते हुए। दो दिन पहले ही कस्तुरबा बापु के साथ जुड़ीं। पार करते हुए लोगों में अब्बास तैयबजी, सरोजिनि नायडु, भरुच के कोगरेसी नेता और एक अमरीकी जोडा भी शामिल था।
16. गांधीजी की गुहार पर असहयोग आंदोलन के हिस्से के तौर पर सरकार के हिन्दुस्तानी कर्मचारी, मोरारजी देसाई संहित, अपने इस्तीफे देते हुए। गांधीजी और कस्तुरबा बालसा गाँव में काकासाहेब कालेलकर से मुलाकात करते हुए।
17. कपलेथा गाँव के हिन्दु और मुसलमान किसानों द्वारा मिलकर बैलगाडीओं से मिढोला नदी पर बनाये पुल पर से यात्री पार होते हुए।
18. गांधीजी और यात्री बांस से बनाये कामचलाऊ पुल पर से किम नदी पार करते हुए | मीठूबहन पिटिट पल पर आधे रास्ते आकर गांधीजी का स्वागत करते हुए |
19. मजदूर अपने माथे पर किट्स लाईट ढोते हुए। एक ट्रक यात्रीओं के लिये फलों और सब्जियों से भरा हुआ। गांधीजी इस तामझाम से अत्यंत दुखी थे और भाटगाम की सभा में कहा कि वे अंतरमुखी होकर अंदर के प्रकाश में देखना चाहते है, और यात्रीओं को भी ऐसा करना चाहिये।
20. यात्री अश्विनी कुमार रेल्वे पुल पर से तापी नदी पार करते हुए और लोगों से पुल भरा हुआ। अगली सुबह यात्री एक बड़ी शोभायात्रा में शामिल होते हुए। सूरत शहर से यात्रीओं को उत्तेजनापूर्ण भव्य विदाई दी गई थी।
21. नवसारी के दुधिया तालाब पर गांधीजी विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए। एक अंतर्राष्ट्रीय फिल्मकर्मी इस असाधारण दृश्य का एक बड़े वाहन की छत से फिल्मांकन करते हुए। लोग ठेले पर से खादी खरीदते हुए।
22. २४ दिन और २४१ मील के बाद यात्रा दाडी पहुंचती है। सैफी विला के यजमान गांधीजी और यात्रीओं का स्वागत करते हुए। एक प्रार्थना सभा और बाद में गांधीजी का संबोधन, उन्होंने कहा कि दांडी का चयन इस अहिंसक नमक सत्याग्रह के लिये भगवान ने किया है।
23. समुद्र में नहा कर गांधीजी ने मुट्ठीभर नमक उठाकर नमक का कानून तोड़ दिया। यात्रीओं ने वही किया और नमक सत्याग्रह की शुरूआत हो गयी। जल्दी ही यह असहयोग आदोलन देशभर में फैल गया।
24. १३ अप्रैल, गांधीजी महिला सम्मेलन में बोलते हुए। ५ मई १९३०, एक गौरा मेजिस्ट्रेट सशस्त्र पुलिस के दल साथ कराडी-मटवाइ गाँव में घासफूस से बनी झोंपड़ी से गांधीजी को गिरिफ्तार करने आधी रात को पहुंचा। उन्हें यरवडा जेल ले जाया गया।
एक संरचना की दीवार पर गाँधीजी (Gandhiji) का 5 अप्रैल 1930 का उद्धरण जो दांडी में लिखा गया था, उनकी लिखावट में लिखा है जिसमें लिखा है:
I want world sympathy in this battle of Right against Might.
National Salt Satyagraha Memorial (राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह स्मारक)
About the Location of National Salt Satyagraha, Dandi
दांडी (Dandi) का नमक दलदल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक था। 1930 में, महात्मा गांधीजी (Gandhiji) ने ब्रिटिश नमक अधिनियम के विरोध में नमक सत्याग्रह (National Salt Satyagraha) शुरू किया।
उन्होंने अनुयायियों के एक समूह के साथ अहमदाबाद छोड़ दिया, जो उनके विरोध यात्रा के हर चरण में बढ़ रहे थे। दांडी में, उन्होंने नमक उत्पादन पर ब्रिटिश एकाधिकार के विरोध में नमक का उत्पादन करके मुट्ठी भर खारी मिट्टी और समुद्री जल को हटा दिया।
इस सरल कार्य को बहुत राष्ट्रीय समर्थन मिला और भारत में राज की कमर तोड़ने का श्रेय दिया जाता है।
Best time to visit at Dandi :- Sunrise and Sunsets
दांडी बीच (Dandi Beach) घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर और मार्च के बीच का है क्योंकि इस जगह को देखने के लिए मौसम सुहावना होता है।
अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है, (Dandi). दांडी सूरत में एक खूबसूरत समुद्र तट गंतव्य है। इसके समृद्ध इतिहास से जुड़ी प्राकृतिक सुंदरता इसे यहां आने वाले सभी पर्यटकों के बीच पसंदीदा बनाती है। दांडी बीच (Dandi Beach) की शांत और प्राकृतिक सुंदरता अपने लंबे और प्रसिद्ध इतिहास में दूसरे स्थान पर है।
इस समुद्र तट की रेत जहाँ तक नज़र जाती है और नीलम आकाश के लिए एक सुंदर विपरीत है। आप प्रकृति की गोद में आराम कर सकते हैं, या परिदृश्य का पता लगा सकते हैं और अपने आंतरिक इतिहासकार को विचार के लिए कुछ भोजन दे सकते हैं। दांडी बीच (Dandi Beach)एक शांत सप्ताहांत की छुट्टी के लिए आदर्श है, और सूरत (Surat)में अवश्य जाना चाहिए और सूरत का Food of taste को जरूर ट्राय करें |
Solar trees at Dandi memorial
स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी (Gandhiji) द्वारा प्रबलित आत्मनिर्भरता के गुण को बहाल करने के लिए, स्मारक को अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर बनाया गया है। इसके लिए 40 सोलर ट्री लगाए गए हैं। यह इस स्मारक को शुद्ध शून्य-ऊर्जा परियोजना बनाता है। दिन के दौरान उत्पादित ऊर्जा को बिजली ग्रिड में निर्यात किया जाता है और रात के दौरान, आवश्यक ऊर्जा को ग्रिड से वापस आयात किया जाता है। यह प्रणाली महंगी बैटरियों को स्थापित करने और बनाए रखने की आवश्यकता से बचाती है।
Monuments of Mahatma Gandhiji at Dandi
भारत के इतिहास में दांडी बीच (Dandi Beach) के महत्व को व्यक्त करने के लिए महात्मा गांधी जी के दो स्मारकों को दांडी बीच (Dandi Beach) में रखा गया है। एक स्मारक गांधीजी (Gandhiji) द्वारा नमक कानून तोड़ने की सफलता की स्मृति में इंडिया गेट जैसा है। अगला स्मारक खारे मिट्टी को पकड़े हुए गांधीजी की मूर्ति है।
Solar Salt making pans
पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए, सौर नमक (Solar) बनाने वाले पैन स्थापित किए जाते हैं। स्मारक की यात्रा के स्मृति चिन्ह के रूप में पर्यटकों को एक चुटकी नमक वापस घर ले जाने की अनुमति है। इस गतिविधि का उद्देश्य महात्मा की रणनीतिक प्रतिभा का जश्न मनाना है, जिन्होंने स्वतंत्रता की ओर नेतृत्व करने के लिए नमक के शक्तिशाली रूपक का इस्तेमाल किया था।
नमक का कर
कथनः 'ऑन द साल्ट मार्च'
पुस्तक के लेखक प्रो थॉमस वेबर द्वारा वर्ग, जाति और धर्म कोई भी हो हर किसी के खाने में नमक खुराक का जरूरी हिस्सा है। फिर भी चालीस सालों से अधिक समय अंग्रेजों ने राजस्वबटोरने के लिये इस कुदरती चीज पर कर लगाया और इंग्लैंड से आयातित नमक की बिक्री को बढावा दिया। और चालीस साल तक गांधीजी सहित
राष्ट्रीय नेता इस कर का विरोध कर रहे थे।
नमक को आंदोलन के केन्द्र में रखने का तर्क तो साफ था परंतु क्या ऐसीचीजों के आधार पर राष्ट्रव्यापी क्रांतियां होती है? बहुतों को ऐसा नही लगा था, वे सोच रहे थे कि गांधीजी जो खुराक के मामले की सनक में नमक छोड चुके थे, यह एक स्वास्थ्य का नया प्रयोग था। उन्होंने गांधीजी के इस 'बेमतलब' नमक आंदोलन के सिवाय कई तरीके सुझाये, जैसे राजस्व देने से सामूहिक इन्कार का आंदोलन, राजधानी में वॉईसरॉय के घर पर सामूहिक कूच, और विदेशी कपड़ों और निचली अदालतों के बॉयकॉट वगैरह। पर गांधीजी अपनी जनता को ज्यादा जानते थे। सभी इस विषम नमक कर से परिचित थे और इस कर से बचने के तरीकों से भी। एक अति क्षुद्र किसान से लेकर उपर तक हर एक नमक बनाकर, बेच कर या कर दिये बिना बांट कर कानून तोड सकता था। और सरकार इस तरह से नमक कानून के भंग को आसानी से रोक नहीं सकती थी।
गांधीजी ने इस कर को निकालने की मांग रखी और १९३० में अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ पहले तबक्के के अहिंसक क्रांति की दिशा में सिविल नाफरमानी का आंदोलन शुरू करते हुए बिना कर के नमक को बटोरने और बांटने के लिये समुद्र किनारे स्थित दांडी के लिए अपने चुने हुए साथीयों के साथ कूच किया। १९३१ मे हुए गांधी इर्विन समझौते से नमक सत्याग्रह का अंत हुआ और वे सभी गाँववासी जो समुद्र के किनारे बसते थे वे अपने उपयोग के लिये नमक बना उठा सकते थे परंतु नमक पर का कर तो फरवरी १९४० तक रद्द नही हुआ था।